Sunday, November 2, 2008

अब तो मैं उनके लिये रोता भी नहीं

अब तो मैं उनके लिये रोता भी नहीं

अब तो मैं उनके लिये रोता भी नहीं

शायद मेरा ही समजना नाकाफी था

जुबां तो बोली उनकी के मैने तुम्हारे बारे मे कभी सोचा ही नही

नैना कुछ अलग हि बयां कर रहे थे जब हम आखिरी बार मिले थे

सिवाय मान जाने के अलावा चारा भी न था कोइ

ना मानना मेरी नजरों मे उनपे गैरभरोसा हो जाता

समझानेकी कोशिश कर रहा हुं खुदको के ये दर्या तुम्हारा नहीं

पर हाय ये दिल कि कश्ति है के तुफ़ां हि पसंद करती है